केंद्र सरकार ने एक विवादास्पद फिल्म के सेंसर प्रमाणपत्र को रद्द करने की मांग को सिरे से खारिज कर दिया है। यह अपील देवबंद मदरसा संचालक मौलाना अरशद मदनी और कन्हैयालाल हत्याकांड के आरोपी मोहम्मद जावेद ने की थी। दोनों ने दावा किया था कि फिल्म की विषयवस्तु समाज में धार्मिक तनाव और विभाजन को बढ़ावा दे सकती है, इसलिए इसका प्रदर्शन रोका जाना चाहिए।
सरकार का रुख
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) द्वारा जारी प्रमाणपत्र वैध और नियमों के अनुसार है। मंत्रालय ने कहा कि फिल्म को सेंसर बोर्ड की प्रक्रिया के तहत मंजूरी दी गई है और इसे रद्द करने का कोई आधार नहीं है। सरकार ने यह भी दोहराया कि रचनात्मक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाए रखना लोकतंत्र का मूल सिद्धांत है।
अदालत में भी अपील खारिज
इससे पहले, सर्वोच्च न्यायालय ने एक अन्य मामले में भी टिप्पणी की थी कि सेंसर बोर्ड द्वारा दिए गए प्रमाणपत्रों पर अपील के लिए अदालतें मंच नहीं बन सकतीं। यह रुख वर्तमान मामले पर भी लागू होता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि फिल्म के प्रदर्शन को रोकने की मांग न्यायिक और प्रशासनिक स्तर पर स्वीकार नहीं की गई थी।
निष्कर्ष
फिल्म का सेंसर सर्टिफिकेट रद्द करने की मांग को केंद्र सरकार ने खारिज कर दिया है, जिससे यह स्पष्ट हो गया है कि फिल्म को तय समय पर रिलीज़ होने दिया जाएगा। इस फैसले को रचनात्मक स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति के अधिकार को प्राथमिकता देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण संकेत के रूप में देखा जा रहा है।