छत्तीसगढ़ में 27 नक्मासली मारे गए: बसवराजू की मौत से हिला नक्सली नेटवर्क

भूमिका: नक्सली हिंसा पर सबसे बड़ी चोट

21 मई 2025 को छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के अबुझमाड़ जंगलों में एक बड़ा ऑपरेशन हुआ जिसने पूरे देश का ध्यान खींचा। मुठभेड़ में 27 नक्सली मारे गए, जिनमें देश के मोस्ट वॉन्टेड माओवादी नेता नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू भी शामिल थे। यह केवल एक मुठभेड़ नहीं, बल्कि भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ है।


ऑपरेशन की शुरुआत: एक गुप्त मिशन की दास्तान

सुरक्षा एजेंसियों को जानकारी मिली थी कि बसवराजू और उसके सीनियर कमांडर अपने गुट के साथ अबुझमाड़ के जंगलों में बैठक कर रहे हैं। यह इलाका हमेशा से माओवादियों का गढ़ रहा है और सुरक्षा बलों के लिए चुनौतीपूर्ण क्षेत्र माना जाता है।

CRPF की कोबरा यूनिट, छत्तीसगढ़ पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स (STF) और जिला रिजर्व गार्ड (DRG) ने मिलकर एक 72 घंटे का गुप्त ऑपरेशन चलाया, जिसे “ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट” नाम दिया गया। घने जंगल, ऊबड़-खाबड़ रास्ते और जोखिम से भरे हालातों में जवानों ने पूरी रणनीति के साथ कार्रवाई की।

छत्तीसगढ़ के अबुझमाड़ में सुरक्षाबलों द्वारा मारे गए 27 नक्सलियों की मुठभेड़, बसवराजू की मौत के साथ नक्सली नेटवर्क को बड़ा झटका
छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले में सुरक्षा बलों की बड़ी सफलता—27 नक्सली ढेर, जिनमें माओवादी महासचिव बसवराजू भी शामिल

मुठभेड़ की कहानी: गोलियों की गूंज और निर्णायक वार

जब सुरक्षा बल तय स्थान पर पहुंचे, तो दोनों ओर से भीषण गोलीबारी शुरू हो गई। करीब तीन दिन तक रुक-रुक कर चलती इस मुठभेड़ में सुरक्षाबलों ने 27 नक्सलियों को मार गिराया।

बसवराजू, जिस पर ₹1.5 करोड़ का इनाम था, मुठभेड़ में ढेर हो गया। उसके साथ कई महिला नक्सली और वरिष्ठ कमांडर भी मारे गए। घटनास्थल से भारी मात्रा में हथियार, विस्फोटक सामग्री और माओवादी दस्तावेज बरामद किए गए।


बसवराजू कौन था?

  • जन्म: आंध्र प्रदेश
  • भूमिका: माओवादी संगठन का महासचिव
  • जिम्मेदारी: संगठन की रणनीति, हमलों की योजना और जंगलों में नेटवर्क का संचालन
  • इतिहास: 2010 दंतेवाड़ा हमले (76 सुरक्षाकर्मी शहीद), कई IED ब्लास्ट और ट्रेनिंग कैंप की स्थापना
  • इनाम: 1.5 करोड़ रुपए

उसकी मौत माओवादी संगठन के लिए वैचारिक और रणनीतिक दोनों स्तरों पर एक बहुत बड़ा झटका है।

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नक्सली संगठन के लिए क्या है इसका मतलब?

बसवराजू की मौत से संगठन नेतृत्वविहीन हो गया है। पिछले कुछ सालों में शीर्ष नक्सली नेताओं जैसे किशनजी, गणपति और अब बसवराजू के मारे जाने से संगठन की रीढ़ टूटती जा रही है।

अब संगठन को एक नया नेता खोजना होगा जो वैचारिक रूप से मजबूत हो और जमीनी स्तर पर नेतृत्व दे सके — जो वर्तमान हालात में बहुत मुश्किल है।


सरकार और सुरक्षा एजेंसियों की प्रतिक्रिया

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ट्वीट कर कहा:
“यह मुठभेड़ माओवादी आतंकवाद के खिलाफ हमारी अब तक की सबसे बड़ी विजय है। मैं हमारे वीर जवानों को सलाम करता हूं।”

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने भी जवानों की तारीफ की और कहा कि राज्य सरकार विकास और सुरक्षा दोनों पर ध्यान दे रही है। केंद्र सरकार ने यह भी साफ किया कि माओवादी हिंसा के खिलाफ “जीरो टॉलरेंस” की नीति जारी रहेगी।

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स्थानीय लोगों की स्थिति: डर और उम्मीद के बीच

अबुझमाड़ के आसपास के गांवों में रहने वाले आदिवासी समुदाय के लिए यह घटना दोधारी तलवार जैसी है।

  • एक तरफ़ नक्सली आतंक से उन्हें राहत मिल सकती है।
  • दूसरी तरफ़ सुरक्षाबलों की बढ़ी हुई मौजूदगी उनके जीवन में अस्थिरता ला सकती है।

सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि ऑपरेशन के बाद इन इलाकों में सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी मूलभूत सुविधाएं जल्द से जल्द उपलब्ध कराई जाएं।


क्या यह अंत है या एक और अध्याय की शुरुआत?

हालांकि यह मुठभेड़ एक बड़ी जीत है, लेकिन नक्सलवाद की जड़ें बहुत गहरी हैं। सिर्फ गोलियों से नहीं, बल्कि सामाजिक विकास और संवाद से ही इस विचारधारा को जड़ से खत्म किया जा सकता है।

सरकार को चाहिए कि सैन्य कार्रवाई के साथ-साथ:

  1. आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा करे,
  2. उन्हें शिक्षा व स्वास्थ्य सुविधाएं दे,
  3. स्थानीय युवाओं को रोजगार के अवसर दे,
  4. और नक्सली संगठनों से अलग होने वालों को पुनर्वास योजना के तहत मुख्यधारा में जोड़े।

निष्कर्ष: यह एक नई शुरुआत हो सकती है

नक्सलियों के 27 लोग मारे गए” — यह एक साधारण खबर नहीं, बल्कि भारत के आंतरिक सुरक्षा संघर्ष का एक निर्णायक मोड़ है। बसवराजू जैसे चरमपंथी नेता का अंत यह संकेत देता है कि अगर इच्छाशक्ति और रणनीति सही हो, तो हिंसा की सबसे सख्त विचारधारा को भी हराया जा सकता है।

अब सरकार और समाज दोनों की जिम्मेदारी है कि वो बंदूक के साए से बाहर निकल कर भरोसे और विकास की रोशनी में इन क्षेत्रों को ले जाएं। तभी नक्सलवाद का अंत संभव है।

 

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