उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफ़ा देने से पहले ही केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू और जगत प्रकाश नड्डा ने जगदीप धनखड़ से संपर्क किया था। खबर है कि इस दौरान राज्यसभा में जस्टिस यशवंत वर्मा के ख़िलाफ़ महाभियोग प्रस्ताव स्वीकार करने पर बातचीत हुई। कहा जा रहा है कि विपक्ष के इस प्रस्ताव को स्वीकार करने के कारण सरकार धनखड़ से नाराज़ थी। हालाँकि, इस बारे में आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा गया है। धनखड़ ने कहा है कि वह स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफ़ा दे रहे हैं।
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हिंदुस्तान टाइम्स से बातचीत में, मामले से वाकिफ़ लोगों का कहना है, ‘रिजिजू ने धनखड़ से कहा था कि लोकसभा में महाभियोग पर आम सहमति बनाने की प्रक्रिया चल रही है। उन्होंने यह भी कहा कि विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने नोटिस पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। उन्होंने यह भी संकेत दिया कि प्रधानमंत्री इस घटनाक्रम से खुश नहीं हैं।’ सूत्रों ने अख़बार को बताया कि धनखड़ ने संकेत दिया कि उन्होंने सदन के नियमों के अनुसार ही सब कुछ किया है।
इससे पहले, अख़बार से बातचीत में, लोकसभा के एक अधिकारी ने कहा था, ‘सरकार पहले लोकसभा में महाभियोग प्रस्ताव लाना चाहती थी। इसे सरकार की सफलता के रूप में देखा जाता और न्यायपालिका को एक स्पष्ट संदेश जाता, लेकिन धनखड़ ने इसका श्रेय छीन लिया।
धनखड़ ने सरकार की बात नहीं मानी?
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, सूत्रों का कहना है कि रिजिजू, कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और जेपी नड्डा ने उपराष्ट्रपति से इंतज़ार करने को कहा था। मंत्रियों ने कहा कि संयुक्त महाभियोग प्रस्ताव पर आम सहमति बनाने के प्रयास जारी हैं। रिपोर्ट के अनुसार, धनखड़ ने घोषणा की कि उन्होंने राज्यसभा में विपक्षी सांसदों के हस्ताक्षर प्राप्त कर लिए हैं। कहा जा रहा है कि केंद्र द्वारा बार-बार याद दिलाने के बाद भी धनखड़ ने ऐसा कदम उठाया।
रिपोर्ट के अनुसार, मानसून सत्र शुरू होने से चार-पाँच दिन पहले, रिजिजू ने उपराष्ट्रपति को न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की केंद्र की तैयारियों के बारे में सूचित किया था। धनखड़ को बताया गया था कि राज्यसभा में भी ऐसा ही प्रस्ताव लाया जाएगा। रिजिजू ने पूर्व उपराष्ट्रपति को यह जानकारी मानसून सत्र शुरू होने से एक दिन पहले और धनखड़ के अचानक राज्यसभा छोड़ने से पहले दी थी।
उस समय तक, सरकार ने निचले सदन में विपक्षी सांसदों समेत अन्य सदस्यों के ज़रूरी हस्ताक्षर हासिल कर लिए थे। रिपोर्ट के अनुसार, धनखड़ ने रविवार और सोमवार को विपक्षी नेताओं से मुलाकात की और जस्टिस वर्मा के महाभियोग पर चर्चा की। हालाँकि, धनखड़ ने विपक्षी नेताओं के साथ बातचीत पर अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी।
रिपोर्ट के अनुसार, सोमवार सुबह तक यह स्पष्ट हो गया था कि उपराष्ट्रपति वरिष्ठ कांग्रेस नेता से मिल चुके थे और विपक्षी नेताओं के हस्ताक्षर औपचारिक रूप से स्वीकार करने की तैयारी कर रहे थे। चैनल की रिपोर्ट के अनुसार, तब तक सरकार उपराष्ट्रपति से तीन बार बात कर चुकी थी, जिसमें कहा गया था कि हस्ताक्षरों में सत्ता पक्ष के सांसदों के हस्ताक्षर भी शामिल होने चाहिए, क्योंकि एजेंडा आम सहमति से तय किया गया है।
यहीं पर बात बिगड़ गई
इंडिया टुडे के अनुसार, पहले नड्डा और रिजिजू उपराष्ट्रपति से मिले। बाद में रिजिजू और मेघवाल उनसे मिलने गए और तीसरी बार सिर्फ़ मेघवाल ही धनखड़ से मिले। इस तीसरी मुलाकात में कहा गया कि सरकार को भी विश्वास में लिया जाना चाहिए और सत्ता पक्ष के सांसदों के हस्ताक्षर भी ज़रूरी हैं। खबर है कि उपराष्ट्रपति इस बात से सहमत नहीं हुए और उन्होंने सरकार को कोई आश्वासन नहीं दिया। रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने स्पष्ट संकेत दिया कि वह सदन में विपक्षी सांसदों की सूची पढ़ेंगे।
धनखड़ ने सामान पैक करना शुरू कर दिया
धनखड़ ने अपना सामान पैक करना शुरू कर दिया है और जल्द ही उपराष्ट्रपति एन्क्लेव खाली कर देंगे। सूत्रों ने बुधवार को पीटीआई भाषा को यह जानकारी दी। पूर्व उपराष्ट्रपति होने के नाते धनखड़ सरकारी बंगले के हकदार हैं। सूत्रों ने बताया कि धनखड़ दंपति ने मंगलवार को अपना सामान पैक करना शुरू कर दिया। उन्होंने कहा कि वे जल्द ही सरकारी आवास खाली कर देंगे। धनखड़ पिछले साल अप्रैल में संसद भवन परिसर के पास चर्च रोड स्थित नवनिर्मित उपराष्ट्रपति एन्क्लेव में रहने चले गए थे।
शहरी विकास मंत्रालय के एक अधिकारी ने मंगलवार को कहा, “उन्हें (धनखड़) लुटियंस दिल्ली या किसी अन्य इलाके में टाइप-8 बंगला दिया जाएगा।” टाइप-8 बंगला आमतौर पर वरिष्ठ केंद्रीय मंत्रियों या राष्ट्रीय दलों के अध्यक्षों को आवंटित किया जाता है। धनखड़ ने सोमवार को स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया था।